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जैनों का संक्षिप्त इतिहास/20
1173 ईसवी तक उनकी रचनाएं भी सहस्त्रों थीं। जिनमें "त्रिशष्टि श्लाघा पुरुष चरित्र", 'व्याकरण', "सिद्ध हेम शब्दानुशासन", "कुमारपाल चरित्र" आदि प्रमुख थीं। अन्य जैनाचार्यों में अकबर के समय श्री हरीविजय जी हुए। आईने अकबरी में 21 प्रथम श्रेणी के विद्धानों में तथा उनमें जो गैर-मुस्लिम का उल्लेख है, उनमें हरीविजय जी भी थे , जिनका अकबर ने फतेहपुर सीकरी में सन् 1582 में अभिनंदन किया था। उनके उपदेश से सम्राट अकबर ने अपने राज्य में कुछ विशिष्ट दिनों के लिये हिंसा, आखेट बन्द किया था। ____ आबू पर्वत पर सन् 1032 में विमलशाह ने विश्वविख्यात । विमल-वसहि आदिनाथ मंदिर बनवाया। जैन वास्तुकला का वह स्वर्णकाल था। तत्पश्चात् सन् 1232 में वस्तुपाल तेजपाल ने नेमिनाथ मंदिर बनवाया। ये दोनों जिनालय विश्व में अपनी स्थापत्य एवं शिल्पकला में बेजोड़ हैं। संगमरमर के पत्थर में इन दोनों मंदिरों के गूढमण्डप, झूमर, गोपुरम, रंगमंडप, खम्भों, हस्तीशाला व अन्य मूर्तियाँ जिस तरह उत्कीर्ण की गई हैं एवं जो बारीक कारीगरी का अद्वितीय प्रभाव छोड़ा हैं वह किसी चितेरे से कम नहीं है। इसी प्रकार राणकपुर का सुन्दर, पर्वतीय उपत्यका में . स्थित , विशाल जैन मंदिर , जो नलिनीगुल्म विमानाकार का है, . स्थापत्य एवं शिल्पकला का अत्यन्त मनमोहक नमूना है , जिसे 1439 में धरणाशाह के द्वारा बनवाया गया था। ____उल्लेखनीय है कि ये तीनों अनुपम भव्य मंदिर जो हजारों वर्षों बाद भी कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में अद्वितीय रहे हैं, पोरवाल जैनों द्वारा बनवाये गये थे। आज पोरवाल, ओसवाल, श्रीमाली में सामान्यतः विवाह शादी नहीं होती है, जबकि इनकी उत्पत्ति स्थान एवं समाज भीनमाल(श्रीमाल) नगर से ही थे। श्री अगरचन्द नाहटा, जिन्होंने पोरवाल इतिहास की प्रस्तावना लिखी है, ने बताया है "श्रीमालनगर जो वर्तमान में भीनमाल है, उसमें पूर्व दरवाजे के आस पास बसे लोग जिन्हें जैन बनाया वे श्रीमाल