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19/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार अनुतेराव वैयादासो, (10) पनहवागर (प्रश्न व्याकरण), (11) विवागसूयंक (विवाकसूत्र) ।
. इनके अलावा बारह उपांग अथवा सहायक अंग हैं। दस प्रकीर्ण बिखरे हुए टुकड़े हैं। फिर छः छेद सूत्र तथा विशिष्ट ग्रंथ एवं मूल सूत्र आदि हैं। ____ अतः कुल अंग, उपांग, प्रर्कीण, छेदसूत्र, विशिष्टग्रंथ एवं मूल सूत्र मिलाकर 45 ग्रंथ हैं , जिन्हें 'आगम' कहा जाता है। अंगों के अलावा ग्रंथों में कुछ कमीबेशी भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों में मानी गई है। उपरोक्त ग्रंथों पर बाद के जैनाचार्यों ने भाष्य भी लिखे । पौराणिक गाथाओं को श्वेताम्बर "चरित्र" कहते हैं। तत्पश्चात् निम्न जैनाचार्यों की रचनायें एवं मंदिर आदि स्थापत्यकृतियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं। जैन धर्म के प्रभावी आचार्य पुस्तक में साध्वी संघमित्रा द्वारा निम्न अतिरिक्त तथ्य दिये गये हैं। उत्कर्ष काल 530 वि.स. 1530 तक का 1000 वर्ष का बताया है , जिसमें आचार्य सिद्धसेन हुए; जिन्होंने "न्याय अवतार' मौलिक रचना की है। स्वयं कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने उनके लिए कहा है, "सिद्धसेन की महान गूढार्थक स्तुतियों के आगे मेरे जैसे व्यक्ति का प्रयास अशिक्षित व्यक्ति का आलाप मात्र है।" आचार्य समन्तभद्र “स्याद्वाद" के संजीवक आचार्य थे। सिद्धान्त चक्रवर्ती आचार्य नेमीचन्द, चामुण्डराय के गुरु थे। गोम्मटसार उनकी प्रसिद्ध कृति है। वि.स. 1132 में जिन्होने 1.36 लाख लोगों को जैन बनाया वे मणिधारी जिनचन्द्र दादा के नाम से विख्यात थे। उनकी परम्परा में जिन कुशलसूरि चमत्कारिक आचार्यों में थे जो भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने में कल्पवृक्ष तुल्य थे। उदयप्रभसूरि ने "नेमिनाथ चरित्र" संस्कृत में लिखा।
हरिभद्रसूरी जिनदत्त सूरी के शिष्य थे। वे संभवतः 705 से 775 ई. में हुए। “योग दृष्टि समुच्चय” उनका ग्रंथ था । उन्होंने 444 ग्रंथों की रचना की , हालांकि उनमें से 88 ढूंढ लिये गये हैं। 11 वी सदी में कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्र सूरी हुए । 1089 से