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________________ 221/ जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार जो खर्च होता है वह भारत में सम्पूर्ण बजट राशि से अधिक है । निश्चय है इन गरीब अफीमचियों का खर्च भी अपने परिवार की अन्य सतत खर्चों के बजट से अधिक है। एक नशा दूसरे नशे को जन्म देता है, नदी के कगार के वृक्ष गिरते जाते हैं। अतः समय रहते चेतना पैदा हो। 6. शिविर द्वारा चिकित्सा एक आदर्श पद्धति है जिससे उनमें परस्पर संबल मिलता है। एक सामूहिक सुनिश्चय से सभी ओत-प्रोत होते हैं। दुख-सुख में साथ मिलता है । सामूहिक सेवा से भी उन पर वांछित प्रभाव पड़ता है। जिन क्षैत्रिय कम्पाउन्डर, अध्यापक एवं आश्रम के स्वयं सेवियों तथा हमारी संस्था के लोगों द्वारा उनकी संभाल, दवाईयों से चिकित्सा, सेवासुश्रुषा की, उससे वे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। जिनकी चेतना कुंठित हो गई, रूग्ण हो गई वहीं पुनः सचेत हो जाती है । यह सामूहिक संबल ही व्यक्ति को अपने इस निश्चय में सहयोगी बनाता है। 7. वास्तव में मादक नशे की बेभान दशा ने व्यक्ति के जीवन - अमृत में विष घोल दिया है, उसका विवेक खो चुका । उसका बड़ा दोषी स्वयं समाज है । यही सामंती - समाज बड़ी महफिलों में श्रीमंतों, ठाकरों, जागीरदारों की सभा में अपने काश्तकारों, कारिन्दों को साथ बैठाकर अफीम घोल - घोल कर अपनी झूठी शान बढ़ाते हुए उन्हें चुल्लू भर-भर कर अफीम के घूंट के साथ मौत पिलाता रहा है। यह सम्मान सूचक प्रतीक फिर सभी छोटे बड़े उत्सवों में अनुकरणीय बनते रहे हैं। चाहे किसी भी जाति में सगाई आदि न्यात, टाणें, मृत्यु - भोज कोई कैसा ही अवसर क्यों न हो। अफीमचियों के इस रौनक, शान वाले दरबार का भला कौन विरोध कर सकता ? ऐसे सामूहिक नशा मुक्ति - शिविर से अफीम छोड़ने वालों में ही वह शक्ति आ सकेगी जो अफीम के इस दानव - देवता को सम्मान के शीर्ष से अपदस्थ
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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