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199 / जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार
खाद्यान्न से भी ज्यादा संकट विश्व भर में पेयजल का कई जगह है एवं भविष्य और भी भयावह है। कहा जाता है कि भविष्य के युद्ध, 'जल पर अधिकार' के लिए होंगे। जहाँ एक किलो अनाज उत्पादन के लिए 110 लीटर औसतन पानी चाहिए वहाँ एक किलो माँस के लिए 11,000 लीटर पानी चाहिये। माँस उत्पादन के लिए विश्वभर में लगभग 1400 करोड़ गायें पाली जाती हैं। इस चक्रीय तरीके से कितने अनाज एवं पानी का अपव्यय हो रहा है अनुमान लगाया जा सकता है। ज्ञात रहे कि संसार भर में केवल एक प्रतिशत पेयजल उपलब्ध है। शेष 70 प्रतिशत समुद्री खारा जल है एवं शेष का 30 प्रतिशत ध्रुवीय जमे बर्फ में है तथा और शेष नदी नालों आदि में है ।
अन्न एवं पानी के साथ विश्व का पर्यावरण कितना दुषित हो रहा है। इस सम्बन्ध में श्री अल्गोर पूर्व उपराष्ट्रपति अमेरीका ने अपनी खोज पूर्ण पुस्तक " असुविधा जनक सत्य – “An inconvenient Truth” में लिखा है। मुख्यतः इन 1400 करोड़ गायों के चारे एवं मोटा अनाज उत्पादन के लिए प्रतिवर्ष 1140 लाख हेक्टेयर वर्षावन भूमि के वृक्ष काटे जाकर जंगल मिटाये जा रहे हैं। इस तरह अब तक लगभग 1500 करोड़ हेक्टेयर वन भूमि का सफाया कर दिया गया है। वे वर्षा वन विश्व के फेंफड़ों तुल्य हैं क्योंकि विश्व की 50 प्रतिशत ऑक्सीजन इससे एवं 80 प्रतिशत वनस्पतियाँ प्राप्त होती हैं। वनों की इस तरह की बर्बादी मानवता के लिए एक त्रासदी से कम नहीं है।
कोयला, खनिज तेल के उपयोग एवं वृक्षों की कटाई आदि के कारण वायुमण्डल में बढ़ती कार्बनडाई ऑक्साईड भी चिंता का विषय है। पशुओं के कल कारखाने भी औद्योगिकरण के अंग है औद्योगिकरण के प्रारम्भ से अब तक 50 प्रतिशत CO2 और बढ बया है। यही नहीं माँसाहार की प्रवृत्ति से पशुओं द्वारा उत्सर्जित मीथेन गैस जो कार्बनडाई ऑक्साईड से 25 गुणी अधिक सशक्त है, उसकी मात्रा 'ग्लोबल वार्मिंग' में 17 से 20 प्रतिशत तक हो