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शाकाहार-जगत का त्राण / 198
उसका शाकाहारी बनना है । मद्यपान से अधिकांशतः यह विवेक कुण्ठित हो जाता है। ठीक ही कहा है, "नशे में ही कोई मुर्दा खा सकता है।" महावीर ने मद्यपान को उतना ही या अधिक बुरा माना है क्योंकि वह हमें विवेकहीन बनाता है ।
अक्सर कई समझदार लोग भी तथ्यों की जानकारी के अभाव में तर्क करते हैं कि सभी लोग शाकाहारी बन जाये तो लोगों को खाद्यान्न भी नहीं मिलेगा। इससे ज्यादा गलत बयान भला और क्या होगा क्योंकि सच्चाई यह है कि अधिक माँस उत्पादन के लिए मुख्यतः विकसित देशों में 8-9 किलो अनाज गाय, बैल, भैंस आदि को खिलाकर उससे एक किलो की दर से माँस प्राप्त किया जाता है। शोध अनुसार लगभग 90 करोड़ लोगों को दिया जाने वाला खाद्यान्न गेहूँ, मक्का, अन्न मोटा अनाज ढोरों को, अतिरिक्त मांस उत्पादन हेतु खिलाया जाता है, अर्थात निःसन्देह वर्तमान विश्व की जनसंख्या जो लगभग 700 करोड़ है उतनी और जनसंख्या के जीवन आधार के लिए यदि वह शाकाहारी हो तो लगभग उक्त खाद्यान्न पर्याप्त है।
लेकिन फिर भी इस तरह खाद्यान्न को माँस में परिवर्तित करने की चक्रीय प्रक्रिया से विश्व में प्रतिदिन 1 /7 यानी 100 करोड़ आबादी को भूख का सामना करना पड़ता है। संसार के कई भागों में दुष्काल, दरिद्रता, भुखमरी, कुपोषण से प्रतिदिन 40,000 मानवों की मृत्यु हो जाती है जिसमें तीन चौथाई लोग 5 वर्ष से कम उम्र के छोटे बच्चे होते हैं । कारण स्पष्ट है कि गरीब देश एवं उनमें भी निर्धन रेखा के नीचे के तबके के लोग अन्य के मांसाहार के कारण मँहगा अनाज क्रय नहीं कर पाते हैं। इस त्रासदी से बचने के लिए शाकाहार ही एक मात्र ईलाज है । अब तो बायो डीज़ल के लिए भी मक्के की काफी मात्रा में फसल कई देशों में उगाने से मक्का की उपलब्धि और भी कम होने जा रही है।