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169/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार
shedding of karma) or involuntary penances through misguided religious tenets, not being angry with any one even on slanderous insulting words or remarks, by practising self-control in face of provocation by thinking of values of composure; as patience is antidote of anger, so is contentment to greed. All these acts result in or are conducive to inflow of pleasure producing karma, for the individual family and society. केवलिश्रुतसंघधर्मदेवावर्णवादो दर्शनामोहस्य
(6.14, तत्वार्थ सूत्र) अर्थः- केवली, श्रुत (शास्त्र), संघ (साधु-साध्वी, श्रावकश्राविका) धर्म और देव का अवर्णवाद करना, दर्शनमोहनीय कर्म का आस्रव है। केवलज्ञानी भगवतों एवं अर्हत जिनके चार धाती (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय एवं अन्तराय) कर्म नष्ट हो गये हैं, जिन्होंने मोक्ष-मार्ग का उपदेश दिया है, उसे श्रुत कहते हैं, उस पर गणधरों द्वारा द्वादशांग की रचना की गई है, जो आचारंग आदि बारह हैं। ऐसे ही उपांगों की रचना परम त्यागी एवं ज्ञानी संतों द्वारा की गई है। इन दोनों से मिलकर श्रुत सांगों पांग बनता है। इस प्रकार चतुर्विध संघ, साधु साध्वी एवं श्रावक, श्राविका होते हैं। वे केवली प्ररूपित धर्म, जिनधर्म का पालन करते हैं। जो अहिंसा, संयम, तप प्रधान हैं। देव के चार भेद पूर्व में कहे जा चुके हैं। इन सबका या किसी का अवर्णवाद करना या झूठा कहना, बुरा कहना, दर्शन मोहनीय कर्म का कारण होता है।
kewali sruta sangha dharma devavarna vādo darsaana mohasya
(6.14, Tattavarth Sutra)