________________
कर्मबन्धन के कारण एवं क्षय तत्वार्थ के आलोक में/164
Adhikaranam jivā jivāh
(6.8 , Tattavarth Sutra) MEANING:- The passions of a being are the means for actions that cause long term bondage, external things are body and implements or instruments used for voilence etc. and internal means are his intensity of feeling or attachment towards it.
आद्यं संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतकषायविशेषैस्त्रिस्त्रिस्त्रिचतुश्चैकशः
(6:9, तत्वार्थ सूत्र) - अर्थ:- जीवाधिकरण आस्रव, सरंभ, समारम्भ, आरम्भ, मन, वचन, काय रूप तीन योग, कृत कारिक अनुमोदना तथा क्रोधादि चार कषायों की विशेषता से 108 भेद रूप हैं। संरभ, समारंभ एवं आरम्भ का अर्थ है इच्छा होना, तैयारी करना एवं क्रिया करना। इन तीनों अवस्थाओं के प्रेरक चार कषाय हैं। तीन करण क्रिया के प्रकार हैं, जैसे स्वयं करना, अन्य से करवाना, या अन्य के किये अच्छे बुरे कार्य की अनुमोदना करना। करण भी मन, वचन एवं काय के सहयोग से प्रकट होते हैं। इस प्रकार सब के गुणा से (3x3x3x4) उपरोक्त 108 भेद बनते हैं।
टिप्पणी- (तत्वार्थ सूत्र उपाध्याय केवल मुनि पृष्ठ 268), नवकारवाली में भी 108 वर्ण होते हैं , प्रायश्चित भी 108 नवकार गिनकर करते हैं।
ādyam samārambha samārambhā rāmbha yog krita a kārit numata kasãy viśe sais tristris tris
catuś caikasah
(6:9 Tattavarth Sutra)