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163/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार
of them, destructions of ecology, nursing passions and deluded view etc.
तीव्रमंदज्ञाताज्ञातभाववीर्याधिकरणविशेषेभ्यस्तद्विशेष:
(6:7. तत्वार्थ सूत्र) अर्थ :- तीव्र भाव, मंदभाव, ज्ञातभाव, अज्ञातभाव, वीर्य विशेष और अधिकरण विशेष से आस्रव में हीनाधिकता होती है। आस्रव में न्यूनाधिकता, तीव्रकषायों, जाने-अनजाने में क्रिया होने पर, असावधानी बरतने पर शक्ति एवं मनोभावपूर्वक, प्रयोजनवश (अधिकरण) कार्य करने आदि पर निर्भर है। इन कारणों की भिन्नता से आस्रव या बन्धन में भी अन्तर होता है।
· tivra mand jnātājgnātābhāva virya dhikarana visese bhyast dviseasah
(6.7, Tattavarth Sutra) MEANING :- Nature of bondage of Karma, owing to inflow of Karma, differs according to the intensity of passions, acting deliberately or through ignorance, without caution, the interest, vigour and purpose with which actions are undertaken, the bondage follows action done personally, through others, or approving it although done by others.
अधिकरणं जीवाजीवाः
(6:8, तत्वार्थ सूत्र) अर्थ:- अधिकरण के दो भेद होते हैं- एक जीव और दूसरा अजीव अर्थात् आस्रव जीव और अजीव दोनों के आस्रव हैं।