SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्वार्थ सूत्र की विषयवस्तु एवं संदेश/144 उपयोग एवं गुरुजनों का अतिथि संविभाग व्रत का पालन है। जीवन अनुपयोगी एवं मरण सन्निकट दिखें व्रत पालन न हो तब संलेखना, राग-द्वेष रहित बन, धारण करें। सभी महाव्रतों के अन्य पांच-पांच अतिचार भी बताएं हैं, उनसे बचें। आठवे पाठ का वर्णन संक्षेप में ऊपर दिया जा चुका है। अत्यन्त महत्वपूर्ण चारित्र मार्ग नवे पाठ में संवर एवं निर्जरा के रूप में दिया है आश्रव का निरोध संवर है। इसी प्रकार इसमें पांच समितियों और तीन गुप्तियों का भी उल्लेख है। जिन्हें अष्ट-प्रवचन-माता भी कहते हैं जैसे ईष्या समिति (चलना फिरना), भाषा-समिति, ऐषणा समिति (ईच्छाओं पर अकुंश), आदान- निक्षेपण-समिति (वस्तु को उठाना रखना) एवं उत्सर्ग यानी (मल मूत्र दूशित पदार्थ विसर्जन) हैं एवं तीन गुप्तियों-मन, वचन, काया के अशुभ योग का निरोध है। सब कार्यों में जाग्रत रहे - यानि सावधानी पूर्वक व्यवहार करें जिससे अहिंसा महाव्रतों आदि का पालन हो। दस धर्म बताये हैं- उत्तम, क्षमा, मार्दव, आर्जव, शोच, सत्य, संयम,तप, त्याग अकिंचन्य एवं ब्रह्म धर्मो। ____ मार्दव का अर्थ अभिमान रहित, आर्जव सरल बनना कपट रहित बनना, सत्य में हित मित वचन शामिल है। संयम से तात्पर्य पांचों इन्द्रियों और मन पर अकुंश है। तप छ: ब्राह्म व छ: अभ्यान्तर है। त्याग से तात्पर्य आवश्यकता से अधिक की लालसा न करना। अनासक्त भाव, अकिंचन का अर्थ देह तक में आशक्ति नहीं इसी प्रकार बारह भावनाएं हैं। जो अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आश्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधि, दुर्लभ एवं धर्म भावना हैं। इन बारह भावनाओं में संसार की वास्तविक प्रकृति तथा उससे निवारण आदि सम्मिलत हैं अतः संसार एवं कार्यसम्बन्धी राग कम किया जाना धार्मिक क्रिया है। इस प्रकार के परिषह भी
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy