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________________ खरतर तपागच्छीय देवासिय, राईय, पक्खि चउमासिय.../122 "खिप्पं उवसामेई वाहित्तव सुस्क्खिओ विजो।"(37) सुशिक्षित वैद्य से रोग ठीक हो जाता है, वैसे ही प्रतिक्रमण के पश्चाताप से दोष दूर हो जाते हैं। अतः प्रतिक्रमण द्वारा निषिद्ध कार्य करने एवं योग्य कार्य न करने के दोषों के लिए प्रायश्चित एवं आत्म निंदा करता हूँ । अतः हे प्रभु - . "खामेमिसव्वजीवे, सव्वेजीवा खमंतुमे। ___ मित्ती में सव्वभूएसु, वैरमन्झंमनकेणई"। वंदित्त्तु में, 49 वे, लगभग आखरी दोहे में, कहा गया है। अंतिम 50 वे दोहे में कहा है - "एवमहं आलोइअ निदिअ गरहिअ दुगच्छंसम्म" अर्थात् "मैं अच्छी तरह कृत पापों की आलोचना, निंदा गुरु के समक्ष गर्हा" घृणा करता हूँ।' 2. अब प्रमुख सूत्र सकलार्हत चैत्य वंदन का संक्षिप्त वर्णन किया जाता है। मंदिर मार्गियों में चैत्य, प्रतिमाओं का विशिष्ट महत्व है। तीर्थंकरों की अनुपस्थिति में अनेक लांछन, प्रतीक-सिंह मृगादि- के साथ जिनेश्वर के भव्य कलात्मक मंदिर, नयनाभिराम योगमुद्रा में स्थित तीर्थकरों की मूर्तियाँ सहज ही भक्त का मन मोह लेती हैं। प्रतिक्रमण देवसीय, राइय एवं अन्य विविध प्रकार से उनको वंदन स्तुति कर उनका गुणानुवाद किया जाता है, ताकि नाम, स्थापना, द्रव्य भाव से जो प्रत्येक क्षेत्र एवं काल में उनकी प्रशस्ति हई है, उससे हम भी प्रभावित हो एवम् आत्म कल्याण कर सकें। "संकलार्हत सूत्र' चैत्य वंदन में चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति रूप में चौबीस, तथा प्रभु महावीर को एवं चेत्यों, तीर्थों, प्रतिमाओं को भी कुछ दोहे गाथाएं समर्पित हैं। संस्कृत में रचे ये दोहे अत्यन्त सुन्दर, प्रभावी, गूढ और आध्यात्म शास्त्र के बेजोड़ नूमने हैं, स्मरणीय हैं। स्थानाभाव से कुछ ही उल्लेखित करना उपर्युक्त होगा। वाचक अतः मूल पाठ सहृदयता से पढ़ें, समझें।
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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