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खरतर तपागच्छीय देवासिय, राई, पक्खि चउमासिय, एवं संवत्सरी श्रावक प्रतिक्रमण के प्रमुख तीन सूत्रों
पर प्रकाश
1) वंदित्तु सूत्र, 2) सकलार्हत एवं 3 ) अजित शांति 1. वंदित्तु सूत्र को श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र भी कहा जाता है। इसमें कुल पचास गाथाएं हैं। श्रावकों के बारह व्रतों एवं अतिचारों से यह सूत्र सम्बन्धित है। पांच महाव्रत अंहिसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह जिसे श्रावक श्राविका पूर्ण रूप से पालन नहीं कर पाते हैं, अतः उन्हें पांच अणुव्रत रूप में ही पालने पर भी अतिचारों के दोषी हो जाते है, इसी तरह तीनों गुणव्रत हैं (1) दिशा परिमाण व्रत (2) दिग्परिमाण व्रत एक दिशा में कुछ भाग तक जाना आदि ( 3 ) अर्थ दण्ड व्रत। अन्य चार शिक्षा व्रत हैं (1) सामायिक - व्रत (2) उपभोग–परिभोग परिमाण - व्रत ( 3 ) पोषधोपवासव्रत एवं ( 4 ) अतिथि संविभागव्रत ।
दिन में, रात्रि में, एक पखवाड़े में, चतुर्मास में अथवा वर्ष भर में इन व्रतों के पालन में जो दोष लगे हैं, उनका हृदय से पश्चाताप करना ही 'प्रतिक्रमण' है। इन व्रतों एवं अतिचारों के सम्बन्ध में आगार (गृहस्थ ) धर्म में, तत्वार्थ सूत्र के सप्तम अध्याय में एवं इस वंदित्तु सूत्र की गाथाओं में विस्तार से अतिचार सामान्यतः कम जानकारी में आते हैं,
वर्णन है। जो संक्षेप में मात्र