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क्रमाङ्क
सूक्ति नम्बर
सूक्ति शीर्षक
291
227
प्रिय सत्य बोलो
292
फिरभी आराधक
स
293
91
बहुश्रुत-दर्शन, चन्द्रवत् बल जैसा भाव
294
406
295
51
296
384
बाह्योपकरण रक्षक नहीं बालभाव बाहर भीतर असार
297
350
352
को
बुद्धिमान् साधक
230
. 299
300
413
301
541
बोलो, परपीडाकारक नहीं बोलो, असत्य नहीं बोलो, कर्कश नहीं बोलो, निश्चयात्मक नहीं बोलो, मित
302
546
303
558
304
518
बाँटो, मुक्ति
305
306
ब्रह्मचर्य से उत्तमगति ब्रह्मचर्य अतिकठिन ब्रह्मचर्य दुष्कर ब्रह्मचर्य सर्वोत्तम तप
168 173 582
307
308
309
48
310
भय से संत्रस्त
भयावह क्या ? अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 253
192
(