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________________ 362. विरले आत्मरत्नपारखी स्तोकाहि रत्नवणिजः स्तोकाश्च स्वात्मसाधका । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 740 ] ज्ञानसार 23/5 जैसे रत्न की परख करनेवाले जौहरी बहुत कम होते हैं वैसे ही आत्मोन्नति हेतु प्रयत्न करनेवालों की संख्या न्यून ही होती है । 363. राजहंसवत् महामुनि G लोकसंज्ञामहानद्यामनुश्रोतोऽनुगा न के । प्रतिश्रोतोऽनुगस्त्वेको, राजहंसो महामुनिः ॥ - ज्ञानसार 23/3 लोकसंज्ञा रूपी महानदी में लोकप्रवाह का अनुसरण करनेवाले भला कौन नहीं है ? प्रवाह - विरुद्ध चलनेवाले राजहंस के समान मात्र मुनीश्वर ही हैं। 364. ज्ञान का सार श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 740] नाणं संजमं सारं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 741] आचारांग नियुक्ति 245 पू. 132 ज्ञान का सार संयम है । 365. संयम से निर्वाण संजमसारं च निव्वाणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 741] आचारांग नियुक्ति 245 पृ. 132 चारित्र से निर्वाण पद की प्राप्ति होती है । सारभूत 366. जीवन अस्थिर, जलबिन्दुवत् से पासति फुसियमिव कुसग्गे पणुन्नं निवइयं वाएरियं । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड- 6 • 146
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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