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- आवश्यकनियुक्ति 1268 हिंसादि निषिद्ध कार्य करने का, स्वाध्याय प्रतिलेखनादि कार्य नहीं करने का, तत्त्वों में अश्रद्धा उत्पन्न होने का एवं शास्त्रविरुद्ध प्ररुपणा करने का प्रतिक्रमण किया जाना चाहिए। 21. क्षमापना, प्राणी मात्र से
सव्वस्स जीवरासिस्स, भावओ धम्मनिहिय नियचित्तो। सव्वं खमावइत्ता, अहयंपि खमामि सव्वेसिं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 317]
- संस्तारक प्रकीर्णक 105 धर्म में स्थिर चित्त होकर मैं सद्भावपूर्वक सर्व जीवों से अपने अपराधों की क्षमा माँगता हूँ और उनके सब अपराधों को मैं भी सद्भावपूर्वक क्षमा करता हूँ। 22. क्षमापना
सव्वस्स समण संघस्स, भगवओ अंजलि करिअ सीसे। सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयंपि ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 317-1358]
- मरणसमाधि-प्रकीर्णक 336 मैं नतमस्तक होकर समस्त पूज्य श्रमण संघ से अपने सर्व अपराधों की क्षमा माँगता हूँ और उनके प्रति मैं भी क्षमा भाव रखता हूँ। 23. प्रतिक्रमण-लाभ पडिक्कमणेणं वयच्छिद्दाई पिहेइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 318]
- उत्तराध्ययन 29/03 प्रतिक्रमण से जीव व्रत के छिद्रों को रोक देता है। 24. कच्छपवत् साधक कुम्मो इव गुत्तिदिए अल्लीण पल्लीणे चिट्ठइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 357]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5.62