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________________ सुकृत सहयोगी श्रुतज्ञानानुरागी श्रेष्ठिवर्य, श्रीमान् मीठालालजी उकचन्दजी हीराणी ! परमगुरुभक्त धर्मानुरागी श्रावकरत्न रेवतड़ा निवासी शा. मीठालालजी हीराणी सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अतिशय उत्साह एवं उल्लासपूर्वक तन-मन-धन से सदैव सहयोग देते हैं । आपका विद्यानुराग उत्कृष्ट है । यद्यपि वे लक्ष्मीवन्त हैं, फिरभी विनम्रता उनका उत्कृष्ट गुण है । साथ ही आप सूझबूझ के धनी हैं । निश्चय ही उनका लक्ष्य है : ‘सा विद्या या विमुक्तये' । 'कुमारपाल प्रतिबोध' में कहा है : "ज्ञान मोहान्धकार को नाश करने में सूर्य के समान है । ज्ञान कल्पवृक्ष के समान है । ज्ञान देर्जय कुंजरों की घटाओं को भेदने में सिंह के समान है। ज्ञान जीव-अजीव वस्तु-विचार का स्वरूप बतानेवाली तीसरी आँख है। उन्होंने अत्यन्त श्रद्धा-भक्तिभावपूर्वक प.पूज्यपाद राष्ट्रसंत वर्तमानाचार्यदेवेश श्रीमद्विजयजयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. का अपने ग्राम में ऐतिहासिक-यशस्वी चातुर्मास करवाया। __ गुरुतीर्थ जन्मभूमि भरतपुर में निर्माणाधीन विश्वपूज्य प्रभु श्रीमद् राजेन्द्रसूरि कीर्तिमंदिर के आप ट्रस्टी हैं । आपके पहले उनके पिताश्री भरतपुर गुरुमंदिर के उपाध्यक्ष रहे हैं। ____ आप वर्तमान में अ.भा.श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद के उपाध्यक्ष पद को सुशोभित कर रहे हैं। श्रीनवकार तीर्थ के निर्माण में आपका पूर्ण सहयोग है। इस प्रकार आप अनेकानेक सत्कार्यों में उत्साहपूर्वक रुचि लेते हैं। ___आप "अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति सुधारस" (पंचम खण्ड) का प्रकाशन करवा रहे हैं। उनकी इस शुभ भावना के लिए हमारी जीवन-निर्मात्री प. श्रद्धेया प.पू. साध्वीरत्ना श्री महाप्रभाश्रीजी म. (पृ.दादीजी म.) 'आशीष देती हैं तथा हमारी ओर से आभार और धन्यवाद । वे भविष्य में भी ऐसे सुकृतकार्यों सदा सहयोग देते रहेंगे। यही हमें आशा है। - डॉ. प्रियदर्शनाश्री -डॉ. सदर्शनाश्री अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5018
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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