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________________ - उत्तराध्ययन - 9/64 अभिमान से अधमगति होती है। 104. विचक्षण विणियदृन्ति भोगेसु । .. - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1819] - उत्तराध्ययन 9/62 विचक्षणजन भोगों से निवृत्त ही होते हैं। 105. द्रव्य-पर्याय द्रव्यपर्यायवियुतं, पर्यायाद्रव्यवर्जिताः । क्व कदा केन किं रूपा दृष्टा मानेन केन वा ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1860] - सन्मतितर्क12 एवं स्याद्वादमंजरी पृ. 19 पर्यायरहित द्रव्य और द्रव्यरहित पर्याय, किसने, किस समय, कहाँ पर, किस रूप में और कौन-से प्रमाण से देखे हैं ? अर्थात् द्रव्य बिना पर्याय और पर्याय बिना द्रव्य कहीं भी संभव नहीं। 106. जैनदर्शन में समग्रदर्शन उदधाविवसर्वसिंधवः समुदीर्णास्त्वयि नाथ दृष्टयः । नचतासुभवान् प्रदृश्यते,प्रविभक्तासुसरित्स्विवोदधिः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1885-1898] - द्वात्रिंशत् द्वात्रिंशिका - 413 हे नाथ ! जिसप्रकार सभी नदियाँ समुद्र में जाकर सम्मिलित होती हैं, वैसे ही विश्व के सम्पूर्ण (दृष्टियाँ) दर्शन आपके शासन में समाविष्ट हो जाते हैं। जिसप्रकार भिन्न-भिन्न नदियों में समुद्र दिखाई नहीं देता, उसी प्रकार भिन्न-भिन्न दर्शनों में आप दिखाई नहीं देते। फिर भी जैसे नदियों का आश्रय समुद्र है, वैसे ही समस्त दर्शनों का आश्रयस्थल आपका शासन ही है। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 83
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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