SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जोस्नेही-जनों के आने पर आसक्त नहीं होता और उनके जाने पर शोक नहीं करता। जो आर्य-वचन में रमण करता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। 9. वही ब्राह्मण जायरूवं जहामढे निद्धन्तमलपावगं । राग-दोस भयातीयं, तं वयं बूम माहणं ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1420] - उत्तराध्ययन 2521 जो कसौटी पर कसे हुए और अग्नि में तपाकर शुद्ध किए हुए स्वर्ण की तरह विशुद्ध है तथा राग-द्वेष और भय से रहित है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। 10. ब्राह्मण कौन ? तसे पाणे वियाणित्ता, संगहेण य थावरे । जो न हिंसइ तिविहेणं, तं वयं बूम माहणं ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1420] - उत्तराध्ययन 2523 जो त्रस और स्थावर जीवों को संक्षेप और विस्तार से भली-भाँति जानकर मन-वाणी और शरीर से उनकी हिंसा नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। 11. धर्ममुख, काश्यप धम्माणं कासवो मुहं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1420] - उत्तराध्ययन 2546 इस भरतक्षेत्र की अपेक्षा से धर्मों का मुख (आदिस्रोत) काश्यप अर्थात् श्री ऋषभदेव भगवान हैं । 12. ब्राह्मण कौन ? तवस्सियं किसं दन्तं, अवचियमंससोणियं । सुव्वयं पत्तनिव्वाणं, तं वयं बूम माहणं ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 59
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy