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________________ 1. यज्ञ-प्रकार अध्यापनं ब्रह्मयज्ञः पितृयज्ञस्तु तर्पणम् । होमो देवो बलि भूतो नृयज्ञोऽतिथि पूजनम् ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1389] मनुस्मृति 3770 अध्यापन ब्रह्मयज्ञ है, तर्पण पितृयज्ञ है; होम देवयज्ञ है; बलि भूतयज्ञ और आतिथ्यपूजा नृयज्ञ है । 2. विभिन्न रुचि - सम्पन्न जन द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञाः योगयज्ञास्तथापरे । स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च, यतयः संशितव्रताः ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1389] भगवद्गीता - 4/28 कई पुरुष ईश्वर - अर्पण - बुद्धि से लोकसेवा में द्रव्ययज्ञ को (द्रव्य लगानेवाले) करनेवाले हैं, वैसे ही कई पुरुष स्वधर्मपालन रूप तपयज्ञ को करनेवाले हैं और कई अष्टांग योगरूप योगयज्ञ करनेवाले हैं तथा दूसरे अहिंसादि तीक्ष्ण व्रतों से युक्त यत्नशील पुरुष स्वाध्याय यज्ञ और ज्ञानयज्ञ को करनेवाले हैं । 3. B मेरी वास्तविक यात्रा जं मे तव - नियम -संजम - सज्झाय - झाणा । वस्सगमादीएसु जोएसु, जयणा से तं जत्ता ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1390] भगवती 18/10/18 तप, नियम, संयम, स्वाध्याय, ध्यान, आवश्यक आदि योगों में - जो विवेकयुक्त प्रवृत्ति है, वह मेरी वास्तविक यात्रा है | 4. पञ्च यम अहिंसा - सत्यऽस्तेय-ब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग - पृ. 1391] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 57
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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