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| सुकृत सहयोगिनी
श्रुतज्ञानानुरागिणी श्राविका रत्न, भीनमाल,
भारतीय संस्कृति में नारी की गरिम्स के लिए मनुस्मृति का यह कथन अक्षरशः सत्य है
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यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यथार्थ में श्री राजेन्द्र जैन महिला मंडल, भीनमाल की श्रुतज्ञान के प्रति रूचि अनुमोदनीय है, उसी का दिव्यफल है इस पुस्तक का प्रकाशन । इस सुकृत में सहयोग देकर महिला मण्डल ने नारी महिमा को अक्षुण्ण रखा है । वे "अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति सुधारस" (चतुर्थ खंड) का प्रकाशन करवा रही हैं । उनकी विद्यानुरागिता की हम भूरिभूरि प्रशंसा करती हैं । दर्शन पाहुड में नाणं णरस्स सारो ।
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ज्ञान मनुष्यजीवन का सार है। ज्ञान मनुष्य को मृदु बनाता है । ज्ञान कर्तव्याकर्तव्य, विवेकाविवेक, तत्त्वातत्त्व और भक्ष्याभक्ष्य का स्वरूप बतानेवाली आँख है । विश्व के समग्र रहस्यों को प्रकाशित करनेवाला भी ज्ञान ही है ।
सद्ज्ञानानुरागिणी भीनमाल निवासिनी इन सुश्राविकाओं को प्रस्तुत पुस्तकमुद्रण में अनुपम सहयोग के लिए हमारी जीवननिर्मात्री प. पूज्या वयोवृद्धा सरलस्वभाविनी वात्सल्यमयी साध्वीरत्ना श्रीमहाप्रभाश्रीजी म. सा. (पू. दादीजी म.सा.) आशीष देती हैं तथा साथ ही हम भी इन्हें धन्यवाद देती हुई यह मंगलकामना करती हैं कि इनके अन्तःकरण में यथावत् ज्ञानानुराग, विद्याप्रेम और श्रुतज्ञान के प्रति आंतरिक लगाव-रुचि व अनुराग दिन दुगुना रात चौगुना वृद्धिगत होता रहें । यही अभ्यर्थना ।
डॉ. प्रियदर्शनाश्री - डॉ. सुदर्शना श्री
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नोट :- भीनमाल निवासिनी सहयोगिनी बहनों की शुभ नामावली प्रस्तुत ग्रन्थ 'सूक्ति-सुधारस' चतुर्थ खण्ड के अन्त में पृ. २५१ पर दी गई है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 18