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338
वा
51
वि
स
लोभ परिणाम लोक-स्वरूप
वही ब्राह्मण
वही श्रेष्ठ ज्ञान
• वचन - फलश्रुति
वाणी तप
विभिन्न रूचि - सम्पन्न जन
विरक्त साधक
विद्वान् सर्वत्र शोभते
विचक्षण
विश्वोपकारक
विरागी निर्बन्ध
विनयधर्म
विरले साधक
विचरण
विषयासक्त
विवेक ही धर्म विषयाक्रान्त
वीर साधक
वैर-त्याग
वैर से वैर
वैर का फल
वैर से पापवृद्धि
सर्वत्र प्रतिष्ठित
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 213