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मा
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273
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294 315
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धन्य कौन ? धर्मश्रुति दुर्लभ धर्म धर्म कैसा? धर्ममूल धर्माचरण तब तक धर्म ही धन धर्म-पुरुषार्थ धर्म, सर्वस्व धर्म-गुण धर्महीन को धिक्कार धर्मोपदेश दृष्टि धर्म-विरुद्ध वचन-त्याग धर्मद्वार धर्मदेशना धर्म विशुद्धि धर्मरत्न दुर्लभ धर्मानुकूल आजीविका धर्म-मार्ग, दुष्कर
352 357 360 378
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धैर्यवान्
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न प्रिय, न अप्रिय नय नयज्ञ प्रणत नए ज्ञानाभ्यास से तीर्थंकर पद न कपट न झूठ न आरम्भ, न परिग्रह नत, फिरभी ध्वस्त
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नारकीय जीव दुःखी अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 207
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