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- दशवैकालिक 4/48 सिद्धावस्था शाश्वत होती है। 437. मुक्ति सुलभ
परीसहे जिणंतस्स, सुलहा सोग्गइ तारिसगस्स । __ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2725]
- दशवैकालिक 4/50 जो साधक परिषहों पर विजय पाता है, उसके लिए मोक्ष सुलभ
438. स्वर्गगामी कौन ?
पच्छा वि ते पयाया, खिप्पं गच्छंति अमरभवणाई । जेसि पिओ तओ, संजमो य, खंती य बंभचेरं च ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2725]
- दशवैकालिक 4/50 . जिन्हें तप, संयम, क्षमा और ब्रह्मचर्य प्रिय हैं, वे शीघ्र ही देवलोक में जाते हैं । फिर वे भले ही पिछली अवस्था में क्यों न प्रव्रजित हुए हो ? 439. धर्मरत्न दुर्लभ
जह चिंतामणिरयणं, सुलहं न हु होइ तुच्छ विहया । गुणविहववज्जियाणं, जियाणं तह धम्मरयणंपि ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2726]
- धर्मरत्नप्रकरण-3 ... जैसे धनहीन मनुष्यों को चिंतामणिरत्न मिलना सुलभ नहीं है, वैसे ही गुणरूपी धन से रहित जीवों को धर्मरत्न भी नहीं मिल सकता। 440. · दुर्लभ सद्धर्म .
भवजलहिम्मि अपारे, दुलहं मणुयत्तणं वि जंतूणं । तत्थवि अणत्थहरणं, दुलहं सद्धम्मवररयणं ॥ ....... - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2726]
- धर्मरत्नप्रकरण-2 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 167