SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 407. काम - भोग बाले पुण निहे काम समणुणे असमित दुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवट्टं अणुपरियट्टति । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग - पृ. 2712 ] एवं [भाग 6 पृ. 732] आचारांग - 12/3/80 अज्ञानी पुरुष स्नेहवान् और काम-भोग प्रिय होकर दुःख का शमन नहीं कर पाता। वह दु:खी होता हुआ दुःखों के चक्र में ही भ्रमण करता है । 408. वीरसाधक - न लिप्पति छणपदेण वीरे । वीरपुरुष हिंसा स्थान से लिप्त नहीं होता । 409. संयमधन से हीन मुनि दुव्वसु मुणी अणाणाए । है, दरिद्र है। श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2712] आचारांग - 1/6/103 श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग पृ. 2712 आचारांग - 12/6/100 जो मुनि जिनाज्ञा का पालन नहीं करता, वह संयम धन से रहित - 410. मुक्त - मोचक संखाय धम्मं च वियागर्रेति, बुद्धा हु ते अंतकरा भवंति । ते पारगा दोहवि मोयणाए, संसोधितं पण्हमुदाहरति ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग - पृ. 2712 ] सूत्रकृतांग 1/14/18 जो धर्म को अच्छी तरह समझकर फिर व्याख्यान या उपदेश करते हैं, वे ज्ञानी संसार का अन्त करते हैं । वे स्वयं मुक्त होकर दूसरों को भी मुक्त करनेवाले हैं, क्योंकि वे प्रश्नों का संशोधित उत्तर देते हैं । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 159 G
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy