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________________ 365. मत-मतान्तर-निष्कर्ष पुव्वं णिकाय समयं पत्तेयं पुच्छिस्सामि-हं भो पवाइया किं भे सायं दुक्खं, उयाहु असायं ? समिया पडिवण्णे यावि एवं बूया-सव्वेसिं पाणाणं, सव्वेसिं भूयाणं सव्वेसि जीवाणं, सव्वेसि सत्ताणं असायं अपरिणिव्वाणं महब्भयं दुक्खं त्ति बेमि । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2697] - आचारांग 1ANN39 सर्व प्रथम विभिन्न मत-मतान्तरों के प्रतिपाद्य सिद्धान्त को जानना चाहिए और फिर हिंसा प्रतिपादक मतवादियों से पूछना चाहिए कि "हे प्रवादियों ! तुम्हें सुख प्रिय लगता है या दु:ख ?" "हमें दुःख अप्रिय है, सुख नहीं" यह सम्यक स्वीकार कर लेने पर उन्हें स्पष्ट कहना चाहिए कि "तुम्हारी ही तरह विश्व के समस्त प्राणी, जीव, भूत और सत्त्वों को भी दुःख अशान्ति (व्याकुलता) देनेवाला है एवं महाभय का कारण है । 366. संसार-परिभ्रमण पूढो पूढो जाइं पकप्पेंति । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2697] - आचारांग - 1/AAM34 यह जीवात्मा भिन्न - योनियों में बार-बार परिभ्रमण करती रहती है। - 367. आत्मतुला-कसौटी सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसि भूताणं सव्वेसि जीवाणं सव्वेंसि सत्ताणं असायं अपरिणिव्वाणं महब्भयं दुक्खं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + . 2697] - आचारांग - JANM39 जैसे आपको दुःख प्रिय नहीं, वैसे ही सभी प्राणियों, सभी भूतों, सभी जीवों और सभी सत्त्वों के लिए दुःख अप्रिय, अशान्तिजनक और महाभयंकर है। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस खण्ड-40149 -
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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