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कोई पुरुष पहले उठता है, बाद में कभी नहीं गिरता । जीवनभर उत्थित ही रहता है । कोई पुरुष पहले उठता है और बाद में गिर जाता है। कोई पुरुष न पहले उठता है और न बाद में गिरता है । 326. धर्म-मूल
जीवदया सच्चवयणं परधणपरिवज्जणं सुसीलं च । खंति पंचिंदियनिग्गहो य, धम्मस्स मूलाई ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2673]
- दर्शनशुद्धिसटीक ? जीवदया, सत्यवचन, परधन का त्याग, शील-ब्रह्मचर्य, क्षमा और पाँचों इन्द्रियों का निग्रह-ये धर्म के मूल हैं। 327. अवसर दुर्लभ जुद्धारिहं खलु दुल्लहं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग पृ. 2674] - आचाराग - 1/
43/059 विकारों से युद्ध करने के लिए फिर यह अवसर मिलना दुर्लभ है । 328. युद्ध, विकारों से इमेण चेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ?
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2674]
- आचारांग - 1/53459 तू अपने अन्तर विकारों के साथ ही युद्ध कर । बाहर दूसरों के साथ युद्ध करने से तुझे क्या मिलेगा ? 329. शील सया सीलं संपेहाए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2674]
- आचारांग - 1/5/3158 सदा शील का अनुशीलन करें।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 139