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304. उद्बोधन
तिण्णो हु सि अन्नवं महं किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2573]
उत्तराध्ययन 10/34
तू महासमुद्र को तैर चुका है। किनारे आकर फिर क्यों बैठ गया
है ?
305. मोक्ष
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खेमं च सिवं अणुत्तरं ।
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मोक्ष क्षेमस्वरूप है, शिवस्वरूप है और अनुत्तर है ।
306. विचरण
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2573] उत्तराध्ययन- 10/35
बुद्धे परिनिव्वुए चरे ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2573]
उत्तराध्ययन
10/36
और उपशान्त होकर विचरण करें ।
प्रबुद्ध 307. शान्ति - मार्ग
संतिमग्गं च बूहए !
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 25731
उत्तराध्ययन 10/36
शांति के मार्ग की संवृद्धि करते रहो ।
308. काल - निरपेक्ष
कालं अणवखमाणो विहरड़ ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2598 ]
उपासकदशा 1/14
साधक कष्टों से जूझता हुआ मृत्यु से अनपेक्ष होकर रहे ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस खण्ड-4 • 134