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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2508] - धर्मसंग्रह 2256 वे माता-पिता और स्वजनवर्ग धन्य हैं, कृतपुण्य हैं, जिनके वंश में चारित्रवान् महान् पुत्र उत्पन्न होते हैं । 274. सुख-दुःख-लक्षण सर्वं परवशं दुःखं, सर्वं आत्मवशं सुखं । एतदुक्तं समासेन, लक्षणं सुखदुःखयोः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2549] - मनुस्मृति 4460 जो पराधीन है, पराए वश में है, वह सब दुःख है और जो अपने अधीन है, अपने वश में है, वह सब सुख है । यह सुख-दु:ख का संक्षिप्त लक्षण है। 275. दुःखित-अदुःखित दुक्खी दुक्खेणं फुडे, नो अदुक्खी दुक्खेणं फुडे । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 2550] - भगवती MAN जो दुःखित है, कर्मबद्ध है, वहीं दु:ख या बन्धन को पाता है । जो दुःखित नहीं है, बद्ध नहीं है, वह दु:ख या बन्धन को नहीं पाता। 276. स्वकृत दुःख अत्तकडे दुक्खे नो परकडे दुक्खे। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2550] - भगवती 17/403 दु:ख स्वकृत है, अपना किया हुआ है; अर्थात् किसी अन्य का किया हुआ नहीं है। 277. कर्म दुक्खी दुक्खं परियादियति । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2550] ____ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 127 )
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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