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261. पर्याय - लक्षण
लक्खणपज्जवाणं तु उभओ अस्सिया भवे ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2463] उत्तराध्ययन 28/
जो द्रव्य और गुण दोनों के आश्रित रहता हो, उसे 'पर्याय' कहते
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हैं ।
262. गुण - लक्षण
एग दव्वस्सिया गुणा ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2463]
उत्तराध्ययन 28/6
जो केवल एक द्रव्य के आश्रित रहते हैं, वे 'गुण' कहलाते हैं । 263. लोक-स्वरूप
धम्मो अहम्मो आकासं कालो पोग्गल जंतवो । एस लोगो त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2463] उत्तराध्ययन
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केवलदर्शी जिनेन्द्रों ने इस लोक को, धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव-इन षट्द्रव्यात्मक स्वरूप में प्रतिपादित किया है । 264. तप, अमोघ
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तपसा सर्वाणि सिद्ध्यन्ति ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2489 ] सूत्रकृतांग सटीक 1/12
तपश्चर्या से सभी कार्य सिद्ध होते हैं
265. चतुर्धा - धर्म
दानेन महाभोगो, देहिनां सुरगतिश्च शीलेन । भावनया च विमुक्तिस्तपसा सर्वाणि सिद्ध्यन्ति ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4124