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242. वैर से वैर
रूहिरकयस्स वत्थस्स रूहिरेण चेव । पक्खालिज्जमाणस्स नत्थि सोही ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2401]
. - ज्ञाताधर्मकथा 18 रक्त से सना वस्त्र रक्त से धोने से शुद्ध नहीं होता। 243. अविनाशी आत्मा अव्वए वि अहं, उवट्ठिए वि अहं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 2403 ]
- ज्ञाताधर्मकथा 15 मैं (आत्मा) अव्यय-अविनाशी हूँ, अवस्थित - एकरस हूँ। 244. अस्थिरचित्त क्रिया, अकल्याणकारी
अस्थिरे हृदये चित्रा, वाङ् नेत्राऽकारगोपना ।
पुंश्चल्या इव कल्याणकारिणी न प्रकीर्तिता ॥ . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2410]
- ज्ञानसार 38 चित्त की अस्थिरता को छोड़े बिना, व्यभिचारिणी स्त्री की तरह वाणी की भिन्नता, दृष्टि की भिन्नता, आकृति की भिन्नता, जैसी विविध क्रियाएँ कल्याणकारी नहीं हो सकती। 245. ज्ञान-दुग्ध • ज्ञानदुग्धं विनश्येत, लोभ विक्षोभकुर्चकैः । अम्लद्रव्यादिवास्थैर्यादिति मत्वा स्थिरो भव ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2410]
- ज्ञानसार 32 ज्ञानरूपी दूध अस्थिरतारूपी खट्टे पदार्थ से (लोभ के विकारों से) बिगड़ जाता है. ऐसा मानकर स्थिर बनो।
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 119