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231. षट् नियम
एकाहारी दर्शनधारी, यात्रासु भूशयनकारी । सच्चित्तपरिहारी, पदचारी ब्रह्मचारी च ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2246]
- धर्मसंग्रह सटीक ? अधि. पदयात्रा (छ:री पालित) में छह 'री' का अर्थात् छह नियमों का पालन करना चाहिए। वे हैं-१. एकल आहारी २. समकितधारी ३. भूमिसंथारी ४. सचित्त परिहारी ५. पैदलचारी और ६. ब्रह्मचारी । 232. परिवर्तनशील देह
से पुव्वं पेयं पच्छा पेतं भेउरधम्म, विद्धंसणधम्मं, अधुवं,
अणितियं असासतं चयोवचइयं, विपरिणामधम्मं पासह एवं रूवसंधि ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2262]
- आचासंग 1AAA53 इस शरीर को देखो । यह पहले या पीछे एकदिन अवश्य छूट जाएगा। विनाश और विध्वंस इसका स्वभाव है । यह अध्रुव है, अनित्य है और अशाश्वत है । यह घटने-बढ़नेवाला है और विविध परिवर्तन होते रहना, इसका स्वभाव है। 233. नए ज्ञानाभ्यास से तीर्थंकरपद
अपुवणाणग्गहणे, सुयभत्तीपवयणे पहाणया । एएहि कारणेहि, तित्थयरत्तं लहइ जीवो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2295]
- ज्ञाताधर्मकथा 8 नए-नए ज्ञान का अभ्यास करने से जीव तीर्थंकर गोत्र का उपार्जन करता है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में. सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 116