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- श्री अभYA/Pए मैं
212. तपश्चरण नऽन्नत्थ निज्जयाए तव महिडेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2206 ]
- दशवकालिक 94/515 केवल कर्म-निर्जरा के लिए तपस्या करनी चाहिए । इस लोकपरलोक व यश: कीर्ति के लिए नहीं । 213. तप-प्रयोजन
नो इह लोगट्ठयाए तवमहिउज्जा, नो परलोगट्टयाए तवमहिद्वेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2206]
- दशवैकालिक 9/5/515 इहलोक के प्रयोजन से तप नहीं करना चाहिए और परलोक के लिए भी तप नहीं करना चाहिए। 214. निष्काम तपाचरण नो कित्तिवण्णसहसिलोगट्टयाए तवमहिलेज्जा।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2206 ]
- दशवैकालिक - 9A/15 - तपोनुष्ठान कीर्ति, वर्ण (यश) शब्द और श्लाघा के लिए नहीं होना चाहिए। 215. तपःशूर तवसूरा अणगारा । .
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2207]
एवं [भाग ? पृ. 1030]
- स्थानांग 4/48817 अणगार तप:शूर होते हैं।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 111
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