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________________ 196/315 - श्री अभYA/Pए मैं 212. तपश्चरण नऽन्नत्थ निज्जयाए तव महिडेज्जा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2206 ] - दशवकालिक 94/515 केवल कर्म-निर्जरा के लिए तपस्या करनी चाहिए । इस लोकपरलोक व यश: कीर्ति के लिए नहीं । 213. तप-प्रयोजन नो इह लोगट्ठयाए तवमहिउज्जा, नो परलोगट्टयाए तवमहिद्वेज्जा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2206] - दशवैकालिक 9/5/515 इहलोक के प्रयोजन से तप नहीं करना चाहिए और परलोक के लिए भी तप नहीं करना चाहिए। 214. निष्काम तपाचरण नो कित्तिवण्णसहसिलोगट्टयाए तवमहिलेज्जा। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2206 ] - दशवैकालिक - 9A/15 - तपोनुष्ठान कीर्ति, वर्ण (यश) शब्द और श्लाघा के लिए नहीं होना चाहिए। 215. तपःशूर तवसूरा अणगारा । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2207] एवं [भाग ? पृ. 1030] - स्थानांग 4/48817 अणगार तप:शूर होते हैं। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 111 -
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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