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________________ समय पर सहजतया जाग जाना 'निद्रा' है, कठिनाई से जागा जाए वह 'निद्रा-निद्रा' है। 158. वचन-फलश्रुति वयणं विन्नाण फलं, जइ तं भणिए वि नत्थि किं तेणं? - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2074] - विशेषावश्यक - 1513 वचन की फलश्रुति है अर्थज्ञान । जिस वचन के बोलने से अर्थ का ज्ञान नहीं हो तो उस वचन से क्या लाभ ? 159. सामायिक सामाइओ वऊत्तो, जीवो सामाइयं सयं चेव । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2076] - विशेषावश्यक भाष्य 1529 सामायिक में उपयोग रखनेवाली आत्मा स्वयं ही सामायिक हो जाती है। 160. निर्भयता णिब्मयं जत्थ चोरभयं नत्थि । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2080] - निशीथ चूर्णि - 1 जहाँ निर्भयता है, वहाँ चोरभय नहीं होता । 161. दृढ प्रतिज्ञ लज्जागुणौधजननीजननीमिव स्वा-, मत्यन्तशुद्धहृदयामनुवर्तमानाम् ॥ तेजस्विनः सुखमसूनपि सन्त्यजन्ति, । सत्यव्रतव्यसनिनो न पुनः प्रतिज्ञाम् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4: पृ. 2092] - भर्तृहरिकृत नीतिशतक 18 (परिशिष्ट) _अभिधान राजेन्द्र कोंष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . '7 आम पारस खण्ड-4.97
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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