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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 944] आवश्यक नियुक्ति भाष्य 1287
जो गुरु के अति निकट रहकर भी उनके अनुकूल नहीं चलता है,
वह पास रहकर भी दूरातिदूर है । 192. गुरु साक्षी गुरु सक्खिओ हु धम्मो ।
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गुरु साक्षी ही धर्म है।
193. गुरु वचन है औषधि
194. प्रज्ञा
जो गिves गुरूवणं भण्णंतं भावओ विसुद्धमणो । ओसहमिव पिज्जं तं, तं तस्स सुहावहं होइ ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 945] उपदेशमाला 96 एवं महानिशीथ 5/12
गुरु द्वारा कहे जानेवाले वचनों को, जो भावपूर्वक प्रसन्नचित्त से ग्रहण करता है वह उसके लिए वैसे ही सुखावह होता है जैसे कि रोगी के औषधि पीने पर वह उसके लिए सुखप्रद होती है ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ: 945] धर्मसंग्रह 2 अधिकार
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पण्णा समिक्ख धम्मं ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 961] उत्तराध्ययन 23/25
स्वयं की प्रज्ञा से धर्मतत्त्व की समीक्षा करनी चाहिए ।
195. इति वृत्त प्रमाण
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मज्झिमा उज्जु पन्ना उ ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 961 ]
उत्तराध्ययन 23 /26
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 104