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दुष्ट लोग लज्जाशील को बुद्ध, व्रत में रुचि रखनेवाले को दम्भी, पवित्र पुरुष को कपटी, शूरवीर को दयाहीन, ऋजु (मुनि) को विपरीत बुद्धि (चुप रहनेवाले को निर्बुद्धि), मधुरभाषी को दीन, तेजस्वी को घमण्डी, सुवक्ता को बड़बड़ानेवाला और धीर गंभीर, शान्त पुरुष को असमर्थ कहते हैं। विद्वानों का या गुणवानों का कौन-सा गुण है, जिसे दुष्टों ने कलंकित न किया हो ? 181. संसार-आवर्त जे गुणे से आवट्टे, जे आवट्टे से गुणे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 908]
- आचारांग 145/41 जो विषय है वह आवर्त है और जो आवर्त है वह विषय है । 182. इन्द्रिय-विषय जे गुणे से मूलट्ठाणे, जे मूलट्ठाणे से गुणे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 908]
एवं [भाग 6 पृ. 725]
- आचारांग 120/62 . जो गुण अर्थात् विषय है, वह मूल स्थान अर्थात् संसार है और जो मूल स्थान (संसार) है, वह गुण (विषय) है। 183. जीव का लक्षण
नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा । वीरियं उवओगो य, एयं जीवस्स लक्खणं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 912]
- उत्तराध्ययन 2801 ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग – ये सब जीव के लक्षण हैं। 184. लक्षण सर्वोत्तम मानवता के माणुस्सं उत्तमो धम्मो, गुरु नाणाइ संजुओ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 924] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 . 101