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________________ - आचारांग - 132015 जो संसार के दु:खों का ठीक तरह से दर्शन कर लेता है, वह कभी पाप-कर्म नहीं करता है। 41 मनुष्यायु-अल्प भी अप्पं च खलु आउं इहमेगेसिं माणवाणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 176] - आचांरांग - 12/64 निश्चय ही इस संसार में कुछ मनुष्यों की आयु अल्प होती है। 42 ढलती आयु में मूढ़ . अभिकंतं च खलु वयं संपेहाए ततो से एगया मूढभावं जणयंति । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 176] - आचारांग - 12/64 अवस्था को तेजी से जाते हुए देखकर व्यक्ति चिन्ताग्रस्त हो जाता है और फिर एकदा (जीवन के उत्तरार्द्ध में) वह मूढ़ता को प्राप्त हो जाता है । 43 आत्मगुप्त जितेन्द्रिय कडं च कज्जमाणं च आगमेस्सं च पावगं । सव्वं तं णाणु जाणंति, आयगुत्ता जिइंदिया ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 176] - सूत्रकृतांग - 1/821 आत्म-गुप्त (रक्षक) जितेन्द्रिय साधक किसी के द्वारा अतीत में किए हुए, भविष्य में किए जानेवाले और वर्तमान में किए जाते हुए पाप की सर्वथा मन-वचन और काया से अनुमोदना नहीं करते । 44 असत्-असत् नो य उप्पज्जए असं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 176] - सूत्रकृतांग - IAnal अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 . 67
SR No.002317
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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