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सिवान साल का माग
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100 सारो परूवणाए चरणं तस्स विय होइ निव्वाणं। 2 115 सालंबणो पडतो, अप्पाणं दुग्गमेऽवि धारेइ ।
इय सालंबणसेवा, धारेइ जई असढभावं ॥ 116 सालंबसेवी समुवेति मोक्खं ।
2 249 साहाहि रूक्खो लभई समाहि । छिनाहिं साहाहिं तमेण खाणुं ॥
सी 168 सीहं जहा च कुणिमेणं निब्भयमेग चरं पासेणं। 2 209 सीयंति अबुहा।
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66 सुहदुक्ख संपओगो, न विज्जई निच्चवाय पक्खंमि ।
एगंतच्छेअंमि अ, सुहदुक्ख विगप्पणमजुत्तं ।। 74 सुरक्खिओ सव्व दुहाण मुच्चइ । 137 सुद्धे सिया जाए न दूसएज्जा।
2 193 सुव्वते समिते चरे।
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207 सूरं मन्नति अप्पाणं जाव जेतं न पस्सति।
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16 से जहावि अणगारे उज्जुकडे नियाग पडिवण्णे अमायं कुव्वमाणे वियाहिते।
2 28 22 सेणे जह वट्टयं हरे।
2 32 49 से ण हासाए ण किड्डाए ण रतीए ण विभूसाए। 2 177 104 से तारिसे दुक्खसहे जिइंदिए, सुएण जुत्ते अममे-अकिंचणे। विरायइ कम्म घणम्मि अवगए, कसिणप्भपुडावगमेव चंदिमित्ति ।।
2 387 161 से पभूयदंसी... सदा जते दटुं विप्पडिवेदेति अप्पाणं किमेस जणो करिस्सति ?
2 616 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 139