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________________ 112. भाव-वासित हृदय मैत्र्या सर्वेषु सत्त्वेषु, प्रमोदेन गुणाधिके । मध्यस्थेष्वविनीतेषु, कृपया दुःखितेषु च ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 496] - एवं भाग 2 पृ. 503 - प्रवचनसारोद्धार 67 द्वार समग्र जीवसृष्टि के प्रति मैत्री भाव बनाए रखना, अपने से अधिक गुणीजनों के प्रति प्रमोदभाव रखना, अविनीत-उद्धत लोगों पर मध्यस्थउपेक्षा भाव रखना और दु:खी लोगों के प्रति करूणाभाव बनाए रखना चाहिए। 113. आत्मवत् - स्वरूप नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारुतः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 502-780] - एवं [भाग 6 पृ. 747] | - भगवद्गीता 2/23 इस आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग जला सकती है, न पानी गला सकता है और न हवा सुखा सकती है । 114. आत्म-स्वरूप अच्छेद्योऽयमदाह्योऽय-मविकार्योऽयमुच्यते । नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 502] - एवं [भाग 6 पृ. 747] ... - भगवद्गीता 2/24 यह आत्मा अच्छेद्य है, अभेद्य है, विकार रहित है, यह नित्य, सर्वव्यापी, स्थिर, अचल और सनातन है । अभिधान राजेन्द्र कोप में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/86
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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