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60. आत्मा ही सब कुछ
अप्पानई वैतरणी, अप्पा कूडसामली । अप्पा कामदुहा धेनू, अप्पा मे नंदणं वणं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 325] ____ - एवं [भाग 2 पृ. 231]
- उत्तराध्ययन 20/36 मेरी [पाप में प्रवृत्त] आत्मा ही वैतरणी नदी और कूट शाल्मली वृक्ष के समान कष्टदायी है । आत्मा ही सत्कर्म में प्रवृत्त] कामधेनु व नंदनवन के समान सुखदायी भी है । 61. कायर-जन
सीयन्ति एगे बहु कायरा नरा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 325]
- उत्तराध्ययन 20/38 अनेक मनुष्य कायर होते हुए दु:खी होते हैं । 62. वीर मार्गानुसरण के अयोग्य
आउत्तया जस्सय नत्थि काई । इरियाए भासाए तहेसणाए ॥ आयाण निक्खेव दुगुंछणाए । न वीर जायं अणुजाई मग्गं ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 325-326]
- उत्तराध्ययन 20/40
जिसे ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेप और उत्सर्ग समिति में किंचित् मात्र यतना [विवेक] नहीं है, वह मुनि वीर मार्ग का अनुसरण नहीं कर सकता। 63. कर्मबन्ध-अनुच्छेद
जो पव्वइत्ताण महव्वयाइं सम्मं नो फासयति पमाया। अनिग्गहप्यायरसेसुगिद्धे,न मूलओछिंदइ बंधणं से ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/71