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अहिंसक संयमशील साधु ही सुसाधु होता है । 242. धर्म-सार : समता
एतं खु णाणिणो सारं जं न हिंसति किंचणं । अहिंसा समयं चेव, इत्ता वंतं विजाणिया ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग | पृ. 878-879] - सूत्रकृतांग 1/1/4/10
- एवं 1/11/10 ज्ञानी होने का सार यही है कि किसी भी प्राणी की हिंसा न करें । अहिंसा मूलक समता ही धर्म का सार है । बस, इतनी बात सदैव ध्यान में रखनी चाहिए। 243. अहिंसक बनो !
सव्वे अक्कंत दुक्खाय, अतो सब्वे अहिंसिया ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष
. [भाग 1 पृ. 878-879) __ - सूत्रकृतांग 1/1/4/9 एवं 1/11/9
सभी जीवों को दु:ख अप्रिय है, ऐसा मानकर सभी को अहिंसक बने रहना चाहिए। 244. हिंसा - निषेध
न हिंस्यात् सर्वभूतानि ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 878]
- छान्दोग्य उपनिषद् अ. ४ किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो । 245. धार्मिक कौन ?
न हिंस्यात्सर्वभूतानि, स्थावराणि चराणि च । आत्मवत् सर्वभूतानि, यः पश्यति स धार्मिकः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 878] - छान्दोग्य उपनिषद् अ. 8
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/120