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233. निंदा त्याग
सव्वे पाणा ण हीलियव्वा न निंदियव्वा ।
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प्रश्न व्याकरण 2/6/23
विश्व के किसी भी प्राणी की न अवहेलना करनी चाहिए और न
निंदा |
234. अहिंसाराघक
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 874]
वि मित्त- पत्थण- सेवणाते भिक्खं गवेसियव्वं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 874]
प्रश्नव्याकरण 2/6/22
अहिंसा का आराधक श्रमण मित्रता प्रकट करके, प्रार्थना करके, सेवा करके भी भिक्षा की गवेषणा नहीं करें ।
235. भिक्षा ग्रहण - विधि
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वि हिलाते णवि णिदणाते भिक्ख गवेसियव्वं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 874]
प्रश्न व्याकरण 2/6/22
सुसाधु अन्य लोगों के समक्ष न तो गृहस्थ की बदनामी करके और न ही उसके निन्दा - दोष प्रकट करके भिक्षा ग्रहण करे ।
236. अहिंसाराधक-कर्त्तव्य
णवि वंदण माणणं - पूयणाते भिक्खं गवेसियव्वं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 874]
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प्रश्न व्याकरण 2/6/22
अहिंसाराधक को गृहस्थ की प्रशंसा सम्मान - पूजा - सेवा करके
भिक्षा की गवेषणा नहीं करना चाहिए ।
237. भोजन का उद्देश्य
अक्खो वंजणवणाणुलेवण भूयं संजम जाया णिमित्तं । संजम भार वहणट्ठाए भुंजेज्जा पाण धारणट्टयाए ||
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/118