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________________ देवदत्ता [जाव] °परियणं च विउलेणं असण° [0] वत्थगन्धमल्लालंकारेण य सकारेइ संमाणेइ [जाव] पडिविसज्जेइ । तए पं से पूसनन्दी कुमारे देवदत्ताए सद्धिं उपि पासाय° [.] फुडमाणेहिं मुइङ्गमत्थएहिं बत्तीसइबद्ध° [0] उवगिज्जमाणे [जाव] विहरइ ॥ तए णं से वेसमणे राया अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते । नीहरणं । [जाव राया जाए। तए णं से पूसनन्दी राया सिरीए देवीए मायाभत्तए यावि होत्था । कल्लाकल्लिं जेणेव सिरी देवी तेणेव उवा गच्छइ, २ सिरीए देवीए पायवडणं करेइ, २ सयपागसह- 10 स्सपागेहिं तेल्लेहिं अभिङ्गावेइ अद्विसुहाए मंससुहाए तया. सुहाए रोमसुहाए । चउविहाए संवाहणाए संवाहावेइ, २ सुरभिणा गन्धवट्टएणं उव्वट्टावेइ, २ तिहिं उदएहि मज्जावेइ, तं जहा, उसिणोदएणं सीओदएणं गन्धोदएणं, २ विउलं असणं भोयावेइ, २ सिरीए देवीए ण्हायाए [जाव] °पाय- 15 च्छित्ताए जिमियभुत्तुत्तरागयाए तए णं पच्छा पहाइ वा भुञ्जह - वा, उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुञ्जमाणे विहरइ ॥ तए णं तीसे देवदत्ताए देवीए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुम्बजागरियं जागरमाणीए इमेयारुवे अज्झथिए [५] समुप्पन्ने, “ एवं खलु पूसनन्दी राया सिरीए देवीए माइभत्ते जाय] विहरइ । तं एएणं वक्खेवेणं नो 20 संचाएमि अहं पूसनन्दिणा रन्ना सद्धिं उरालाई [0] भुञ्जमाणी विहरित्तए । तं सेयं खलु मम सिरिं देविं अग्गिपओगेण वा विसप्पओगेण वा मन्तप्पओगेण वा जोषियाओ ववरोवित्तए।२ पूसनन्दिणा रन्ना सद्धिं उरोलाई भोगभोगाई भुञ्जमाणीए विहरित्तए” । एवं संपेहेइ । २ सिरीए देवीए अन्तराणि य [३] पडिजागरमाणी विहरइ ॥ 25
SR No.002313
Book TitleVivagsuyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Modi
PublisherGurjar Granth Ratna Karyalay
Publication Year1935
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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