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सेठ खुशासचन्द ४५ शाही हुक्म नहीं मानता। शाही हुक्म के सामने सभी को झुकना चाहिए । नहीं तो उसका नतीजा सबको भुगतना होगा।' ___ महाजन बोले-'आपका झगड़ा नगरसेठ के साथ है । उसमें शहर की आम प्रजा को सजा क्यों भुगतनी पड़ें? हमने बादशाही हुक्म को नहीं माना हो ऐसी बात नहीं। यह सजा हमको क्यों दी जाय? ___ 'नगर सेठ की हवेली शहर के बीच में हैं। वह शाही फौज का सामना करे यह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उसे शिकस्त देना मेरा फर्ज ही है।' सूबेदार बोला। . महाजन बोले-'आपकी इस जिद्द में प्रजा का लाखों-करोड़ों का नुकसान होगा। यह खतरा उठाने जैसा नहीं है, आप इस मामले में दिल्ली से मशविरा कर लें।'
सूबेदार बोला-'मुझे दिल्ली से पूछने की जरूरत नहीं है। मेरे पास पूरी सत्ता है।'
तब हम क्या करें ? आप हमें कुछ वक्त दें ताकि हम कहीं बाहर जाकर बस जायें । आप दोनों की लड़ाई में भयानक नुकसान होगा। शहर के बीच बाजार का विनाश होगा । आप कुछ सोचिए ।
शहर का कोतवाल, मनसबदार, सिपहसालार सभी ने महाजनों की दरखास्त की ताइद की। सूबेदार विचार में पड़ गया। ___ 'मैं तीन रोज की मोहलत देता हूँ। इस मुद्दत में या तो नगरसेठ शरण में आवे या शहर छोड़कर बाहर चले जायें । मुझे तो नगरसेठ का घमंड उतारना है । उसमें कोई फर्क नहीं हो सकता।'
महाजन नगर सेठ के पास पहुंचे। सेठ खुशालचन्द ने सबको सन्मान के साथ बैठाया। महाजन बोले-'शहर का सत्यानाश होने जा रहा है। कुछ उपाय कीजिए । आप नगर सेठ हैं। सूबेदार