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________________ ४२ तीर्थरक्षक सेठ शान्तीदास ___'आप जो हों, अन्दर नहीं आ सकते। पचास बन्दूकें सामना करने के लिए तैयार थीं।' 'तुम कौन हो? और आगे बढ़ने के लिए किसकी इजाजत चाहिए।' दिलावरखान ने आगे बढ़कर पूछा। ___ उत्तर मिला-'हम अरब हैं । इस पोल में आने के लिए नगरसेठ की इजाजत चाहिए।' ___ दिलावरखान बोला-'बादशाही फौज को रोकने का अन्जाम क्या होगा जानते हो?' अरब बोले-'हम यह सब कुछ नहीं जानते। हमने मालिक का नमक खाया है । मालिक के लिए जान की बाजी लगाकर लड़ेंगे। दिलावरखान बोला-'तुम जानते हो, इसका अंजाम क्या होगा ? एक-एक को पकड़कर शाही फरमान की उदूली के ऐवज में खौफनाक सजा दी जावेगी। तुमको इस मुल्क में रहना हो तो शाही हुक्म के आगे सर झुकाना होगा। नहीं तो जान-माल से तबाह हो जाओगे । शाही फौज को रास्ता दो।' ___ अरब बोले-'हमारी बन्दूकें तैयार हैं। हमारे पास गोला-बारूद भी काफी है । मुकाबले के लिए हम तैयार हैं। इसलिए धमकी न देते हुए आप लोग चले जायं ।' दिलावरखान ने चारों ओर अरबों का जमघट देखा, लड़ने में खून खराबी होने पर भी पोल में जा सकने की सम्भावना नहीं दिखाई दी। वह अरबों की बफादारी से परिचित था। वे जान दे देंगे, पर अन्दर जाने नहीं देंगे। क्या किया जाय ? उलझन में पड़ा। वापिस जाने पर सूबेदार उसे नामर्द कहकर उसकी बेइज्जती करेगा, नौकरी से खारिज कर देगा। और आगे बढ़ते हैं तो अरबों का मुकाबला करना होगा । उसकी स्थिति विषम बन गई।
SR No.002308
Book TitleTirthrakshak Sheth Shantidas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Ranka
PublisherRanka Charitable Trust
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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