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________________ ४० तीर्थरक्षक सेठ शान्तीदास सेठ बोले-'ठीक है, लेकिन सूबेदार साहब से कहो कि खुशालशाह इस तरह की इजाजत लेने की जरूरत नहीं समझते।' सिपाही बोला-आपकी बात, हम कह देंगे, लेकिन ऐसी इजाजत लेने में हर्ज क्या है । सूबेदार साहब इसके लिए कोई नजराना या कर नहीं लेना चाहते, सिर्फ आप इजाजत मात्र ले लें इतना ही चाहते हैं।' सेठ बोले, 'तुम्हारा कहना ठीक हो सकता है, लेकिन हम कोई नया रिवाज शुरू नहीं करना चाहते। चाहे वे आज नजराना या कर न मांगें, पर एक बार रिवाज शुरू होने पर आगे नहीं मांगेंगे यह कौन कह सकता है। भगवान की भक्ति में हम कोई नई बात दाखिल नहीं करने देना चाहते हैं। सिपाही बोले-'आखिर, सूबेदार की इज्जत तो करनी चाहिए।' सेठ बोले-'हम बाजिव बात हमेशा सुनते आये हैं और आगे भी सुनेंगे, लेकिन गैर बाजिव हुक्म हम नहीं मान सकते।' ___ सिपाही तेजी के साथ बोले-'सेठ साहब, आप नाहक क्यों झगड़ा मोल लेते हैं। आप तो व्यापारी हैं, सूबेदार से इस प्रकार झगड़ा मोल लेने में नुकसान ही है । नाहक क्यों मुसीबत में पड़ते हैं।' सेठ बोले-जरूरत पड़ने पर मुसीबत भी सहन करने की ताकत रखते हैं । आप लोग फिक्र न करें। हम व्यापारी जरूर हैं, पर हमने हाथों में चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं।' सिपाही बोला-'इसका नतीजा बुरा भी आ सकता है।' सेठ बोले-'नतीजा चाहे जो आवे, हमें अपने ऊपर भरोसा है।' सूबेदार अपने लोगों से सारी चर्चा सुनकर बहुत क्षुब्ध हुआ। उसने सेठ को बुलाने के लिए आदमी भेजा।
SR No.002308
Book TitleTirthrakshak Sheth Shantidas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Ranka
PublisherRanka Charitable Trust
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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