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________________ ३६ तीर्थरक्षक सेठ शान्तीदास वे चालू रखे । इसका श्रेय सेठ लक्ष्मीचन्द की व्यवहार कुशलता को देना चाहिए । औरंगजेब ने सेठ लक्ष्मीचन्द को अहमदाबाद के नगर सेठ की पदवी के लिए नया फरमान निकाला। सेठ लक्ष्मीचन्द उसे बहुत बड़ी रकमें कर्ज रूप में देते और देहली जाकर समय-समय पर मिलते रहते । उनका उत्कर्ष पिता की तरह उच्च स्थिति में था। औरंगजेब के समय से ही मुगल साम्राज्य का पतन होने लगा था। राजपूत, सिख, और मराठे उसके खिलाफ संघर्ष रत थे। अपने अन्तिम पच्चीस साल औरंगजेब ने दक्षिण में मराठों को पराजित करने में लगा दिये थे। मराठों की राजनीति ऐसी थी कि एक बार एक जगह हार हो जाने पर वे दूसरी जगह लड़ने को तैयार हो जाते। इसलिए औरंगजेब अन्त तक उन्हें पराजित करने में असफल रहा। उसका साम्राज्य कमजोर हो गया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों-मुअज्जम, अजीम और करीमबख्श में राज्यसत्ता के लिए झगड़े शुरू हो गये । उस समय मुअज्जम काबुल और लाहौर का सूबेदार था। औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसने अपने आपको बहादुरशाह नाम से बादशाह घोषित किया। औरंगजेब के दूसरे पुत्र आजिम ने भी अपने आपको बादशाह घोषित कर दिया। इस कारण दोनों भाइयों में चम्बल के पास घनघोर युद्ध हुआ जिसमें आजम पराजित हुआ और मारा गया। करीमबख्श दक्षिण में था। उसने भी बादशाह के रूप में अपना अभिषेक करवाया। लेकिन बहादुरशाह ने उसको भी पराजित कर दिया । हैदराबाद के भयानक युद्ध में करीमबख्श काम आया। सेठ लक्ष्मीचन्द बहादुरशाह से लाहौर में मिले । काफी कर्ज दिया और फौज के लिए राशन की भी पूर्ति की थी। लक्ष्मीचन्द पर बहादुरशाह की कृपादृष्टि थी और जवाहरात आदि की खरीद उन्हीं के द्वारा होती । सेठ समय-समय पर कर्ज देते ही रहते ।
SR No.002308
Book TitleTirthrakshak Sheth Shantidas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Ranka
PublisherRanka Charitable Trust
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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