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________________ १६ तीर्थरक्षक सेठ शान्तिदास कोतवाल ने कहा, 'हुजूर, शांतिदास सेठ ही नहीं, पर सारे महाजन बगावत कर सकते हैं । वे फौज का मुकाबला भी करेंगे।' औरंगजेब गरजकर बोला, 'जो बगावत की हिमायत करे, उन्हें कोड़ों से पीटो, सिपहसालार को हुक्म देता हूँ। दो सौ सिपाही तुम्हारी मदद में दे, जाकर फौरन मन्दिर का कब्जा लो।' सैनिकों ने मन्दिर को घेर लिया। रक्षकों को मन्दिर से बाहर निकाल दिया, जिन्होंने मुकाबला किया उन्हें बन्दी बना लिया गया। सेठ शांतिदास शहजादे की मुलाकात के लिए पहुंचे। मुलाकात की इजाजत मांगी, लेकिन जवाब मिला मुलाकात अभी नहीं हो सकती और जो कुछ हुआ वह तब्दील भी नहीं हो सकता। ___ सेठ ने कहलवाया कि मैं शहंशाह अकबर के जमाने से बादशाहत की खिदमत करता आया हूँ। मेरी वफादारी, पुराने ताल्लुकात और खानदानी का विचार कीजिए। अगर इस मन्दिर के बदले में मेरी सारी सम्पत्ति, घर-बार, जवाहरात सब कुछ ले लिया जाय तो भी मैं खुशी से दे सकता हूँ लेकिन मेरा मन्दिर मुझे वापिस लौटाया जाय । यही मेरी अर्ज है। __ मोहरों के साथ अर्जी भेजी गई, लेकिन औरंगजेब ने कहा कि इसमें अब कुछ नहीं हो सकता। वह बड़ा ही दुराग्रही और असहिष्णु था। अब तक जीवन में सेठ शांतिदास ने सदा सफलता और सुख ही देखा था, कभी आपत्ति, अपमान या दुःख नहीं देखा था, ऐसे सेठ शांतिदास के हृदय को इस घटना से बहुत बड़ी चोट लगी। वे बड़े दृढ़ और साहसी थे, लेकिन निराश होकर दुःखी हृदय से घर लौटे । मन्दिर की समस्या सुलझने तक आयंबिल करने का व्रत लिया। उधर औरंगजेब मन्दिर में पहुंचा। उसने विशाल और भव्य मन्दिर देखकर कहा-'बुत-परस्तों ने बहुत बड़ा मन्दिर बनाया था।'
SR No.002308
Book TitleTirthrakshak Sheth Shantidas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Ranka
PublisherRanka Charitable Trust
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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