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तीर्थरक्षक सेठ शान्तिदास ३ का धर्म होता है, न कि दूसरे निरपराध जीवों का घात करनाअधर्म है।" __ "पर महाराज हमारे पुरोहित धर्मगुरु तो मृगया को धर्म कहते हैं । इसे क्षत्रियों का धर्म बताते हैं ।" वह बोला।
"किन्तु वत्स, पुरोहित कुछ भी कहें। तुम्हारा हृदय क्या कह रहा है ? जब तुम किसी को प्राण नहीं दे सकते-मृत को जीवित नहीं कर सकते तो दूसरे के प्राण लेने, ऐसे निरपराध प्राणी के प्राण लेने में क्या धर्म हो सकता है ? जो तुम्हें बताया गया, वह धर्म नहीं अधर्म है।"-शांत स्वर से मुनिराज बोले।
क्षत्रिय वीर पर मुनिराज की वाणी का प्रभाव हुआ। उसने मुनिराज को नमस्कार कर अपने गांव में आने का आमंत्रण दिया। मुनिराज अपने शिष्य समुदाय के साथ उस क्षत्रिय के ग्राम में गये । उनके त्यागमय सदाचारी जीवन का उस क्षत्रिय पर ही नहीं, सारे परिवार पर बड़ा प्रभाव पड़ा। उन्होंने अपने उपदेश में अभयदान का महत्त्व समझाया। वीरता की सही व्याख्या की, जीवन जीने की कला भी सिखाई। जिसे सुनकर सारा परिवार बहुत ही प्रभावित हुआ
और उस जागीरदार ने सपरिवार अहिंसा धर्म स्वीकार किया। तथा मुनिजी से श्रावक के बारह व्रत धारण किए। ___ठाकुर पद्मसिंह के क्षत्रिय परिवार ने क्षत्रिय की विशेषताओं के साथ अहिंसा, संयम और विवेक को अपनाया। उनमें सद्गुणों की वृद्धि हुई । पद्मसिंह की पांच पीढ़ियां मेवाड़ में अपने गांव में सुख से रहीं, किन्तु मुस्लिमों के आक्रमण ने छट्ठी पीढ़ी के सहस्रकिरण की जागीरदारी छीन ली। उसे अब उस गांव में सामान्य नागरिक की तरह मुस्लिमों के अधीन रहने की अपेक्षा ग्राम-त्याग करना ही उचित लगा और अपने परिवार को लेकर वह अहमदाबाद पहुँच