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ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार
संपादक की कलम से
आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा प्रतिपादित नव-पदार्थ इस प्रकार हैं:
(1) जीव, (2) अजीव, (3) पुण्य, (4) पाप, (5) आस्रव, (6) बंध, (7) संवर,(8) निर्जरा और(9) मोक्षा जीव का लक्षण चेतना है। चेतनारहित अजीव है। वह अजीव पाँच प्रकार का हैः पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश
और काल। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि जीव और पुद्गल का संबंध सात प्रकार से वर्णित है। जीव के शुभ परिणाम से पुद्गल का कर्मरूप परिवर्तन पुण्य है। जीव के अशुभ परिणाम से पुद्गल का कर्मरूप परिवर्तन पाप है। मन-वचन-काय के योग द्वारा पुद्गल कर्मों का आगमन आस्रव है। उन कर्मों का जीव से संबंध हो जाना बंध है। कर्मों के आगमन का निरोध संवर है। कर्मों का एकदेश क्षय निर्जरा है। कर्मों का पूर्ण क्षय होना मोक्ष है। जीव-अजीव पदार्थः
___जीव दो प्रकार के कहे गये हैंः संसारी और मुक्त। संसारी जीवों के पाँच भेद हैः (1) एक इन्द्रिय जीव (स्पर्शन इन्द्रिय-युक्त), (2) दो इन्द्रिय जीव (स्पर्शन और रसना इन्द्रिय-युक्त), (3) तीन इन्द्रिय जीव (स्पर्शन, रसना और घ्राण इन्द्रिय-युक्त),(4) चार इन्द्रिय जीव (स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु इन्द्रिय-युक्त) और (5) पाँच इन्द्रिय जीव (स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत (कर्ण) इन्द्रिय-युक्त)। इस तरह से जीव स्पर्शन से स्पर्श को, रसना से रस को, घ्राण से गंध को, चक्षुसे रूप (वर्ण) को और श्रोत (कर्ण) से शब्द को जानते
हैं।
पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार