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प्रकाशकीय
आचार्य कुन्दकुन्द-रचित 'पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ अधिकार' हिन्दी-अनुवाद सहित पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है।
आचार्य कुन्दकुन्द का समय प्रथम शताब्दी ई. माना जाता है। वे दक्षिण के कोण्डकुन्द नगर के निवासी थे और उनका नाम कोण्डकुन्द था जो वर्तमान में कुन्दकुन्द के नाम से जाना जाता है। जैन साहित्य के इतिहास में आचार्य श्री का नाम आज भी मंगलमय माना जाता है। इनकी समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, रयणसार, अष्टपाहुड, दशभक्ति, बारस अणुवेक्खा कृतियाँ प्राप्त होती
आचार्य कुन्दकुन्द-रचित उपर्युक्त कृतियों में से ‘पंचास्तिकाय' जैनधर्मदर्शन को प्रस्तुत करनेवाली शौरसेनी प्राकृत भाषा में रचित एक रचना है। इसके दूसरे नव पदार्थ-अधिकार में आचार्य द्वारा रचित 105 से 153 तक की गाथाएँ ही अनुवाद में सम्मिलित की गई है। दूसरे अधिकार में जीव-अजीव पदार्थ, पुण्यपाप आस्रव-बंध, संवर-निर्जरा-मोक्ष आदि नव पदार्थ का निरूपण है।
‘पंचास्तिकाय' का हिन्दी अनुवाद अत्यन्त सहज, सुबोध एवं नवीन शैली में किया गया है जो पाठकों के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा। इसमें गाथाओं के शब्दों का अर्थ व अन्वय दिया गया है। इसके पश्चात संज्ञा-कोश, क्रिया-कोश, कृदन्त-कोश, विशेषण-कोश, सर्वनाम-कोश, अव्यय-कोश दिया गया है। पाठक 'पंचास्तिकाय' के माध्यम से शौरसेनी प्राकृत भाषा व जैनधर्म-दर्शन का समुचित ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे, ऐसी आशा है।