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113. अंडेसु पवटुंता गब्भत्था माणुसा य मुच्छगया।
जारिसया तारिसया जीवा एगेंदिया णेया।।
अंडेसु
पवढंता गब्भत्था
माणुसा
(अंड) 7/2 (पवढ) वकृ 1/2 (गब्भत्थ) 1/2 वि (माणुस) 1/2 अव्यय [(मुच्छ)-(गय) भूकृ 1/2 अनि] (जारिसय) 1/2 वि 'य' स्वार्थिक (तारिसय) 1/2 वि 'य' स्वार्थिक (जीव) 1/2 [(एग) वि-(इंदिय) 1/2] (णेय) विधिक 1/2 अनि
अंडों में बढ़ते हुए गर्भ में स्थित . मनुष्य तथा अचेतन अवस्था को प्राप्त हुए जिस प्रकार
मुच्छगया
जारिसया
तारिसया
उसी प्रकार
जीवा एगेंदिया
जीव एकेन्द्रिय जानने योग्य
णेया
अन्वय- जारिसया अंडेसु पवटुंता य गब्भत्था मुच्छगया माणुसा तारिसया एगेंदिया जीवा णेया।
अर्थ- जिस प्रकार (पक्षियों के) अंडों में बढ़ते हुए (जीव) तथा गर्भ में स्थित अचेतन अवस्था को प्राप्त हुए मनुष्य (होते हैं) उसी प्रकार एकेन्द्रिय जीव जानने योग्य (हैं)।
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पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार